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कॉल सेंटर बदल रही है भाषा

कॉल सेंटर बदल रही है भाषा

बीपीओ की दुनिया अपने शुरुआती चरण से काफी आगे बढ़ चुकी है और तेजी से बदल रही है। अब देशी कंपनियां मात्र उपभोक्ता सेवाओं की आउटसोर्सिग नहीं करतीं, उन्हें मैनेज करने का काम भी कर रही हैं। आईटी और क्रेडिट सेवाओं से आगे निकल कर हेल्थ, डिजाइनिंग, मार्केटिंग, रिसर्च और निवेश पोर्टफोलियो के क्षेत्रों में भी क्लाइंट सर्विस रिप्रजेंटेटिव के तौर पर विशेषज्ञों की मांग बढ़ रही है। यही वजह है कि घरेलू कॉल सेंटरों में क्षेत्रीय भाषाओं के जानकारों के लिए भी मौके बढ़े हैं,
उदारीकरण का सबसे अधिक फायदा उन विकासशील देशों को हुआ, जो विकसित देशों की श्रेणी में आने के लिए दशकों से बेताब थे। भारत कारोबार के लिहाज से दुनिया में काफी आगे बढ़ा। कंपनियां बढ़ीं, कारोबार बढ़ा। सूचना व तकनीक से दक्ष युवा उम्मीदवारों की कम लागत में उपलब्धता ने भारत को कॉल सेंटरों का हब बना दिया। पहले ये जॉब सिर्फ उन खास लोगों के लिए थी, जिनकी अंग्रेजी बढ़िया थी, जो अमेरिकन या ब्रिटिश लहजे में अंग्रेजी बोल सकते थे, पर अब स्थितियां बदल गयी हैं।
हालांकि कॉल सेंटरों ने अच्छी कम्युनिकेशन स्किल रखने वाले उन युवाओं के सपनों में भी उड़ान भरी, जिनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि अधिक नहीं थी। लेकिन अब आउटसोर्सिग का काम आईटी के अलावा सेहत, कानून, बैकिंग, वित्त और मार्केटिंग तक फैल गया है। आज सिर्फ विदेशी कंपनियां ही नहीं, घरेलू कंपनियां भी अपनी उपभोक्ता सेवाओं की आउटसोर्सिग करा रही हैं। इसलिए क्षेत्रीय भाषाओं के जानकारों के लिए भी काम करने के मौके बढ़े हैं। क्षेत्रों की विविधता के कारण आर्थिक मंदी के असर के बावजूद घरेलू कॉल सेंटरों का कारोबार बढ़ रहा है और नौकरियों पर कोई खतरा नहीं है।

क्षेत्रीय भाषाओं के कॉल सेंटर

अभी भी भारत में अंग्रेजी बोलने व उसे पूरी तरह से समझने वालों की संख्या 10 फीसदी को पार नहीं कर पाई है। ऐसे में अगर भारत जैसे देश में बिजनेस करना है तो यहां की सभी क्षेत्रीय भाषाओं को सम्मान देना जरूरी होगा। यह बात कंपनियां भली-भांति समझती हैं। इसके अलावा चूंकि घरेलू कंपनियों का बाजार भी घरेलू है, इसलिए विभिन्न कंपनियां अपने यहां क्षेत्रीय भाषाओं के जानकारों को कस्टमर केयर अधिकारी के रूप में रख रही हैं। विभिन्न देसी बैंक, हेल्थ केयर कंपनियां, फाइनेंशियल व इन्वेस्टमेंट फर्म अपने उपभोक्ताओं को बढ़ाने और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए अपनी सेवाओं को घरेलू बाजार में ही आउटसोर्स कर रही हैं। इन कॉल सेंटरों में हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, हरियाणवी, राजस्थानी, मलयालम और कन्नड़ आदि क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाओं के जानकार काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर में अपना कॉल सेंटर चलाने वाले प्रबल सक्सेना ने बताया, ‘हमारे यहां कुल 16 कर्मचारी हैं और ये सभी लोग स्थानीय भाषा बोलते व समझते हैं। इनकी मासिक तनख्वाह 8 हजार से 15 हजार रुपये महीने है। कंपनी के एजेंट के तौर पर काम करने वाले इन कस्टमर केयर एग्जीक्युटिव्स को नौकरी पर रखने से पहले उस कंपनी के उत्पाद व सेवा की जानकारी व आवाज और उच्चरण के लहजे का प्रशिक्षण दिया जाता है।’

बीपीओ इंडस्ट्री का जलवा

नोएडा में ईएक्सएल सर्विस के सीईओ रोहित कपूर का कहना है ,‘हम इस क्षेत्र में मजबूत मांग और पूर्ति देख रहे हैं। सोशल मीडिया, कानून और हेल्थकेयर ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भारतीय कंपनियां अपना परचम लहरा रही हैं।’ डब्ल्यूएनएस के सीईओ केशव मुरुगेश ने बताया, ‘तकरीबन 5%  बीपीओ वर्कफोर्स डॉक्टरों की है, जबकि 15% में चार्टर्ड एकाउंटेंट या सर्टिफाइड पब्लिक एकाउंटेंट शामिल हैं।’ अप्रैल जून के तिमाही में बीपीओ कंपनियों ने अच्छी विकास दर दर्ज की है। इंडस्ट्री का अनुमान है कि आने वाले सात सालों में बीपीओ इंडस्ट्री का आकार तीन गुना बढ़ जाएगा।

कॉल सेंटर में काम करने की योग्यता

यदि कोई 12वीं भी पास है तो वह कॉल सेंटर में नौकरी करने के योग्य है, लेकिन कॉल सेंटर में ऐसे लोगों को ही वरीयता दी जाती है, जो अच्छा बोलते हैं और उनमें किसी की बात सुनने का धैर्य और उसका समाधान शांतिपूर्ण ढंग से करने की योग्यता होती है। कुछ  कॉल सेंटरों ने कम से कम योग्यता अब स्नातक कर दी है। लेकिन जहां पहले 12वीं पास छात्र काल सेंटर में ज्यादा जाना पसंद करते थे, वहीं अलग-अलग क्षेत्रों में उपभोक्ता सेवाओं की आउटसोर्सिग बढ़ने से विभिन्न क्षेत्रों के जानकारों की भर्ती भी की जा रही है। अच्छी बात यह है कि अब इसे दीर्घकालिक करियर के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।

इन योग्यताओं का होना जरूरी है..

-मौखिक व लिखित दोनों में प्रभावी संचार कौशल की क्षमता। धैर्य व काम के लिए तत्परता।
-कंप्यूटर की अच्छी जानकारी।
-तकनीकी प्रक्रिया में सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग या कंप्यूटर साइंस में डिग्री/डिप्लोमा वालों को तरजीह दी जाती है।

तनाव से दूर होते कॉल सेंटर

कॉल सेंटरों में नौकरी ने जितनी तेजी से युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया, उतनी ही तेजी से वे पीछे भी हटने लगे। कारण तनाव और जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं की बढ़ोतरी। पर कंपनियों ने इस दिशा में काफी सुधार किया है। काम करने की अवधि, नियमित शेड्यूल, खान-पान, छुट्टियां व आराम जैसे पहलुओं में काफी बदलाव किए जा रहे हैं।
बीपीओ कंपनियों की चुनाव प्रक्रिया के तहत इंटरव्यू और लिखित परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवार इस क्षेत्र में नौकरी हासिल कर सकते हैं। अक्सर कंपनियों द्वारा वॉक-इन इंटरव्यू आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा उम्मीदवार प्लेसमेंट एजेंट के जरिए भी काम पा सकते हैं।

नौकरियों की बदलती प्राथमिकता

बीपीओ कंपनियों के लिए सबसे बड़ा अवसर इस समय हेल्थकेयर इंडस्ट्री में पनप रहा है और उच्च स्तर पर हेल्थकेयर कॉन्ट्रैक्ट के तहत बीमा अधिकारी, मेडिकल कोडर्स, यूएस रजिस्टर्ड नर्सेज, मेडिकल राइटर और बायोस्टेटिशियनों की मांग तेजी के साथ बढ़ रही है। वेतन के लिहाज से ये आईटी प्रोफेशनल्स के ही बराबर हैं। एक्सेंचर, विप्रो, आईगेट और कॉग्नीजेंट यूएस रजिस्टर्ड नसरें की नियुक्ति कर रहे हैं, जिन्होंने नेशनल काउंसिल लाइसेंसर एग्जाम पास किया है। यह ऐसी परीक्षा है, जिसे यूएस में नर्सों के लिए आयोजित किया जाता है और बहुत बड़ी संख्या में लोग इसमें भाग लेते हैं। ऐसी नर्सों का वेतन 3 लाख रुपये तक है और 6 साल के अनुभव के बाद उन्हें 10 से 14 लाख रुपये सालाना तक तनख्वाह मिलती है। बीमा अधिकारी को भी 20 लाख रुपये सालाना तक का पैकेज मिल रहा है। एक पंजीकृत बीमा अधिकारी बनने के लिए एक छात्र को कम से कम 14 विषयों को पास करना होता है।